विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे

अपवंचित बालक का अर्थ - जन्म के उपरांत से ही बालक निरंतर विकसित होता है| यह विकास वंशानुक्रम के प्रभाव के अंतर्गत वातावरण के आधार पर होता है वातावरण का गुणात्मक प्रभाव बालक के विकास में सहायक होता है| प्रत्येक बालक का अधिकार है कि वह है अपना विकास प्राप्त अभिवृत्ति और योग्यताओं की सीमा तक करें और शिक्षा का उद्देश्य है कि बालक का विकास पूर्णतः हो|

कुछ बालक ऐसे होते हैं जो सुविधाओं के क्षेत्र में सामान्य बालक से कम होते हैं| यह विभिन्न प्रकार की सुविधाओं जैसे आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक से वंचित रह जाते हैं यथा भाषा धर्म जाति क्षेत्र वर्ल्ड लिंग के कारण अपवंचित रह जाते हैं| इन सुविधाओं के अभाव में उनका विकास सामान्य बालकों के समान नहीं हो पाता और उनके विकास में गतिरोध आ जाता है ऐसे बालक  अपवंचित  बालक  कहलाते हैं|
सामाजिक स्तर से वंचित बालक - सामाजिक स्तर से वंचित बालक वह होते हैं जो गरीबी अशिक्षा परिवार की खराब स्थिति के कारण वंचित रह जाते हैं -

  1. सामाजिक रुप से निम्न( जाति वर्ग या धर्म के आधार पर )
  2. सांस्कृतिक स्तर से निम्न
  3. घर का बिगड़ा माहौल व सुविधाओं का अभाव 
  4. पड़ोस व सभी साथियों का  दुष्प्रभाव 
    5-संवेगात्मक रूप से अस्थिर
आर्थिक रूप से वंचित बालक -

  1. गरीबी  व आर्थिक असमानता के कारण
  2. आर्थिक रूप से निम्न
  3. परिवार में खाने व रहने  का अभाव
  4. विद्यालय जाने में असमर्थ व विद्यालय की फीस ना दे पाना
शैक्षिक स्तर से वंचित बालक -

  1.  निम्न शैक्षिक उपलब्धि होती है
  2. समस्या का समाधान नहीं कर पाते
  3. सुविधाओं के बाद भी खराब आदतों के कारण से पढ़ने से वंचित 
  4. आत्मप्रेम व प्रदर्शन की भावना प्रबल होती है
पिछड़े बालक का अर्थ - बिछड़े का शाब्दिक अर्थ है अपने कार्य में अपने सामान्य साथियों से पीछे रह जाना परंतु शिक्षा के संबंध में इसका  अर्थ है छात्र जब  अपने  आयु के  अनुरूप  कक्षा में ना होकर  उससे  पीछे  रहता है तो उसे हम  पिछड़ा हुआ  बालक  कहते हैं चाहे वह  अपनी  कक्षा में  कितना होशियार क्यों ना हो  इस दृष्टि से एक 10 वर्षीय बालक यदि तीसरी कक्षा में पड़ता है तो हम उसे पिछड़ा हुआ कहेंगे भले ही वह अपनी कक्षा में सबसे होशियार क्यों ना हो|
 पिछड़े बालक की पहचान -  पिछड़े बालक की पहचान उदाहरणस्वरूप इस प्रकार समझिए- मान लीजिए किसी छात्र की आयु 14 वर्ष है  उसकी आयु के  अनुसार  उसे नौवीं कक्षा में  होना चाहिए  परंतु  यदि वह  छात्र  छवि  सातवें  आठवीं  कक्षा में है  अथवा  नौवीं कक्षा में तो  है  परंतु  नौवीं कक्षा के मध्य सत्र में भी यदि वह आठवीं कक्षा का  कार्य करने में असमर्थ है तो उसे हम  शैक्षिक दृष्टि से  पिछड़ा हुआ कहेंगे |

निरीक्षण द्वारा पिछड़ेपन की पहचान - निरीक्षण की दृष्टि से पिछड़ेपन को पहचानने के लिए यह देखने का प्रयास करना चाहिए की -
1- आपके द्वारा पूछे गए प्रश्नों अथवा उनके सामने रखी गई समस्याओं का समाधान कौन बालक किस सीमा तक कर पाता है|
2- कक्षा में विषय को पढ़ाते समय उससे संबंधित बातों को पढ़ाएं जाने में कौन सा बालक कितना अधिक भाग लेता है |
3- समय-समय पर ली गई साप्ताहिक मासिक त्रैमासिक अर्धवार्षिक एवं वार्षिक परीक्षाओं में उसे सामान्य से अधिक अंक मिले हैं या कम|
पिछड़े बालक की विशेषताएं - कुप्पू स्वामी के अनुसार पिछड़े बालक में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं -
1-सीखने की धीमी गति
2- जीवन में निराशा का अनुभव
3- समाज विरोधी कार्यों की प्रवृत्ति
4-व्यवहार संबंधी समस्याओं की अभिव्यक्ति
5- सामान्य विद्यालय में पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थता
6- सामान्य शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने में विफलता


 दोस्तों मैं हूं प्रदीप निषाद, अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो हमें जरूर फॉलो करें आप हमें कमेंट करके  अपने विचारों को बता सकते हैं|

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